मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

एक और व्‍यंग्‍य लेख हरिभूमि में प्रकाशित

भर दे परचा

आज मेरा मित्र अविनाश, फिर एक मुस्कुराहट के साथ प्रकट हुआ और बोला, यार.. मैं चाहता हूं कि तू चुनाव लड़ ले। प्रधानमंत्री की कुर्सी का सवाल है। मैंने कहा मैं तुझसे लड़ सकता हूं पर चुनाव नहीं। अखबार का कवर पेज दिखाते हुए बोला, देख...आठ उम्मीदवारों की फोटो के साथ छपा है, उनकी संपत्ति का ब्यौरा। पता है... तेरह सौ निन्यानवे करोड़। अरे कुछ समझ ले... तेरे घर बारिश होगी तो फुहार मेरे तक भी तो आएगी। हम भी बहती गंगा में नहा धो लेंगे। भागीरथ ने तो पुरखों को तारा था, हम अपनी पुश्‍तों को तार देंगे। मैं तो कहता हूं मान जा और भर दे परचा। मैंने कहा प्यारे, इतनी ऊंची उड़ान मत भर, कहीं सूरज की गर्मी पंख न जला दे। एक बार को चल मैं तेरी मान भी लूं तो परचे में क्या भरूंगा? लाखों करोड़ों के गहने मेरे पास नहीं, नकद पैसा मेरे पास नहीं, बैंक लॉकर नहीं, मेरे ऊपर कोई हत्या का केस नहीं, गबन का केस नहीं, सच्चे तो छोड़, झूठा इल्जाम भी नहीं। कोठी बंगले मेरे पास नहीं। तू बता पर्चे की बेइज्जती कराएगा? पर्चा ही मेरी खिल्ली उड़ाएगा। मेरी मान तू अखबार पढ़ना और चैनल देखना कुछ दिन के लिए बंद कर दे। दिल ठिकाने आ जाएगा। ये जो चुनाव हो रहे हैं ये शगल मेला है। दूर बैठकर मजा ले। नेताओं के दोगले चरित्र देख। एक दूसरे को उनकी चुनावी नाव में सुराख कर डुबाना चाहते हैं। खुद भी भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबे हैं। तू इन हाथियों की लीद तोलकर उनकी खुराक का अंदाजा मत लगा, वरना बेमतलब बोझ मरेगा। इनकी पूंछ भी कट चुकी है और सूंड़ भी। बिना सूंड़ के हाथी से शर्म और हया कोसों दूर रहती हैं। महावत इनका कोई है नहीं। देखता नहीं जूता प्रचलन में क्यों आया है। जब देखो चल जाता है। कभी सोचा? जो पहले नहीं चलता था अब क्यों चलने लगा। चलने लगा और उछलने भी लगा। अमेरिका वाले भी ईर्ष्‍या करेंगे और कहेंगे कि भारत को हमारी नकल नहीं करनी चाहिए। इसका पेटेंट तो हमें ही मिला है। अभी तो मंदी की मार झेल रहा है। होश आयेगा तो जरूर बोलेगा। अभी कुछ दिन पहले ओले पड़े थे। सबने पसीने सुखाए होंगे और वाह वाह करी होगी। इन ओलों की गर्मी से किसान को कितने पसीने आ रहे हैं, ये जानने की किसे फुरसत है? जिनके घर पैसों की फसल उगती हो उन्हें रबी की फसल से क्या लेना। मेरे दोस्त, जिस दिन ये लोग समझ जाएंगे कि कफन में जेब नहीं होती.. सारा धन दौलत इनको मिट्टी नजर आयेगा। तब देश ही नहीं संसार सुधर जाएगा।................................................................
पी के शर्मा1/12 रेलवे कालोनी सेवानगर नई दिल्‍ली 110003

रविवार, 5 अप्रैल 2009

एक और व्‍यंग्‍य लेख ' हरिभूमि ' में प्रकाशित हो चुका है।

बड़ी सोच और बड़ी नोच


आज मेरा मित्र अविनाश, उछलता हुआ आता दिखाई दिया। मैं समझ गया, उछलने की उम्र तो है नहीं, पर आज फिर कोई गलत फहमी हो गयी होगी। आते ही बोला, पता है... हमारे देश का जो काला धन विदेशा बैंको में जमा है वह भारत आने वाला है। देश की गरीबी दूर हो जाएगी। मैंने कहा, ख्वाब देखना बुरा नहीं है पर बुरे ख्वाब देखना तो अच्छा नहीं है। क्यों इतने बुरे-बुरे ख्वाब देखता है। उन लोगों के दिल से पूछो जिन्होंने इस देश की खाल नोच-नोच कर ये ब्लैक मनी बनाई और भिजवाई है। देश को नोचना सबके बस की बात नहीं। कोई बड़ा मकसद रहा होगा। बड़े आदमियों की बड़ी सोच और बड़ी नोच।
अच्छा एक बात बता, पाकिस्तान के नवाज शरीफ सउदी अरब में रहे, बेनजीर इंग्लैंड में रहीं, हमारे देश के बड़े भी अगर बड़ी मुसीबत में फंस जाएं तो कहां जाएंगे और क्या खाएंगे। हमारे देशवासी विदेश में भीख मांगे... अच्छा लगता है क्या। देश की इज्जत का भी तो खयाल रखना है। देश का धन, सो अपना धन। भाई रे... ये अपनत्व की भावना है। ज्यादा खुश मत हो, खुश होना आम आदमी के हिस्से आया ही नहीं है। तू आम ही है जो चूसने का नहीं, चुसने का अधिकार रखता है।
इकाई, दहाई और सैंकड़ा से निकल कर अभी हजार यानि चैथे आंकड़े तक ही पहुंच पाया है तू। पूरे साल की पगार जोड़ेगा तो छटवें तक मुश्‍िकल से पहुंच पायेगा। इन बड़ी-बड़ी रकमों की तरफ देखेगा तो सर को इतना उठाना पड़ेगा कि अपनी ही टोपी गिरा लेगा। गणित फिर से पढ़ना पड़ेगा। गिनती दुबारा सीखनी होगी। सन् 2007 में करीब चैदह पद्म पच्चिस नील रुपये स्विस बैंक में जमा थे। अब सन् 2009 में एक संख तो हो ही गये होंगे। बोल....खबर गई सर के ऊपर से, या समझ गया कुछ ? ये संख मंदिर में बजने वाले और नील कपड़ों वाला नहीं है। अब गिनती दुबारा मत सीख लेना वरना तकलीफ होगी। वैसे मुझे विश्‍वास है कि तू इतना बड़ा तो नहीं हुआ है कि भारतीयता को इतनी जल्दी भूल जाए।
मेरी माने तो, इस बात से भी खुश मत हो कि उन लोगों की लिस्ट आउट हो जाएगी जो स्विस बैंकिये हैं। उन लोगों पर थूकने का भारतीय जनता को कोई अधिकार नहीं मिला है। वैसे न नो मन की तीयल होगी और न राधा नाचेगी। तूने अगर ऐसा करने की ठान भी रखी है तो आइडिया पोस्पोण्ड कर दे, कहीं ऐसा न हो कि कोई स्विस खाताधारी तेरी पान सुपारी दे बैठे। मेरी माने तो इस बात पर गर्व कर कि स्विस बैंकियो में भारतीय टॉप पर हैं। टॉप पर रहना भी शान की बात है, है न ?



पी के शर्मा
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